चंडीगढ़ का प्रसिद्ध ‘चंडी मंदिर

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इस मंदिर के नाम से ही चंडीगढ़ शहर को उसका नाम मिला है. यही वजह है कि नवरात्रि में यहां पर हजारों-लाखों भक्‍त पहुंचकर आस्‍था की डुबकी लगाते हैं.ये मंदिर पंचकूला से पिंजौर जाने वाली सड़क पर शिवालिक पहाड़ियों के बीच बसा है. जो करीब 5000 साल पुराना बताया जाता है. वहीं मंदिर के इतिहास के बारे में बताते हुए मंदिर प्रबंधक माता निर्मला देवी ने बताया है कि, इस मंदिर में एक साधु ने सालों तक ताप किया था जिसके बाद उन्हें मां दुर्गा की मूर्ति मिली थी. इस स्‍वरूप में मां महिषासुर का वध कर उसके ऊपर खड़ी थीं.

जिसके बाद साधु ने मां भगवती के इस स्‍वरूप को वहीं पर स्‍थापित कर दिया और उसकी पूजा-अर्चना करने लगे. फिर देखते ही देखते साधु ने यहां पर घास, मिट्टी और पत्थर से मां का एक छोटा मंदिर बनाया दिया और उसे चंडी मंदिर नाम दिया.
इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि, पांडवों ने अपने 12 साल के वनवास के दौरान पर ठहराव किया था. साथ ही अर्जुन ने पेड़ की शाखा पर बैठकर मां की तपस्या की थी, जिससे खुश होकर माता चंडी ने अजुर्न को तेजस्वी तलवार और जीत का वरदान दिया था. जिसके बाद पांडवों ने महाभारत के युद्ध में वियज हासिल की थी.
वहीं जब भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और पंजाब के गवर्नर सीपीएन सिंह मंदिर में दर्शन के लिए आए थे. तो वो मंदिर को देखकर काफी प्रभावित हुए थे. जिसके बाद उन्होंने घोषणा की थी कि अब चंडी माता के नाम पर चंडीगढ़ शहर बसाया जाएगा.
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